द फॉलोअप डेस्क
पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने सांसारिक जीवन का त्याग कर दिया है और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़ा की "महामंडलेश्वर" की उपाधि ग्रहण की है। किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण ने बताया कि ममता कुलकर्णी को आध्यात्मिक नाम "यमाई ममता नंदगिरी" दिया गया है।
लक्ष्मी नारायण ने कहा, "किन्नर अखाड़ा ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बना रहा है। उनके लिए सभी धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं। वह पिछले डेढ़ साल से किन्नर अखाड़ा और मुझसे जुड़ी हुई हैं। उन्हें किसी भी धार्मिक पात्र को निभाने की अनुमति है, क्योंकि हम किसी को उनकी कला प्रदर्शित करने से नहीं रोकते।"
ममता कुलकर्णी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "यह महादेव और महाकाली का आदेश था। मेरे गुरु का आदेश था। उन्होंने यह दिन चुना। मैंने कुछ नहीं किया।" वह भगवा वस्त्रों और रुद्राक्ष की माला पहने प्रयागराज के संगम घाट पर पारंपरिक ‘पिंडदान’ करते हुए नजर आईं। महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया और इस उपाधि के महत्व को समझाने के लिए ज्योतिषी डॉ. वीरेंद्र साहनी से संपर्क किया गया।
महामंडलेश्वर का अर्थ और प्रक्रिया
महामंडलेश्वर हिंदू धर्म में विशेष रूप से सनातन धर्म के अंतर्गत एक सम्मानित उपाधि है। डॉ. साहनी ने बताया, "यह उपाधि भारत के 13 मान्यता प्राप्त अखाड़ों में दी जाती है। ये अखाड़े हिंदू परंपराओं, दर्शन और संन्यासी अनुशासन को संरक्षित करते हैं। शंकराचार्य इस व्यवस्था में सबसे उच्च पद पर होते हैं, और महामंडलेश्वर की उपाधि शंकराचार्य के बाद सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है।"
महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति को मान्यता प्राप्त अखाड़े से जुड़ना पड़ता है और उसके नियमों का पालन करना होता है। साहनी ने बताया, "मुख्य शर्त संन्यास ग्रहण करना है। इसमें प्रतीकात्मक रूप से पुनर्जन्म की प्रक्रिया होती है, जिसमें व्यक्ति स्वयं का पिंडदान करता है। यह अनुष्ठान सामान्यतः पूर्वजों के लिए किया जाता है, लेकिन यहां यह उनके सांसारिक संबंधों और पुरानी पहचान के अंत का प्रतीक है। इसके बाद उनकी आयु नए सिरे से शुरू होती है।"
पट्टाभिषेक समारोह
संन्यास के बाद पट्टाभिषेक समारोह होता है। साहनी के अनुसार, "इस अनुष्ठान में महामंडलेश्वर बनने वाले को पंचामृत (दूध, घी, शहद, दही और शक्कर का मिश्रण) से अभिषेक किया जाता है। यह उनकी शुद्धि और आध्यात्मिक पदोन्नति का प्रतीक है। इस भव्य आयोजन में 13 अखाड़ों के साधु शामिल होते हैं, जहां उन्हें ‘पट्टू’ (एक प्रतीकात्मक वस्त्र) प्रदान किया जाता है, जो उनके महामंडलेश्वर बनने की औपचारिक स्वीकृति होती है।"